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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(८९)


पद:-

गज गामिनी युवती सखी राधे के संग में जा रहीं।

श्याम को देखा झपट दौरीं पकड़ि बतला रहीं।

मन मोहनी मूरत में सूरति लगि गई मुस्क्या रहीं।

अन्धे कहैं धन्य भाग सब की जियति यह सुख पा रहीं।४।