१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(८८)
पद:-
जब रसना नाम को रटन लगी तब मन भी काबू होवेगा।
कहैं अन्ध शाह सतगुरु किरिपा तब गर्भ में आय न रोवेगा।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो तहँ दोनो कर्मन खोवेगा।
सन्मुख पितु मातु की झाँकी हो तन त्यागि अवध सुख सोवेगा।४।
पद:-
जब रसना नाम को रटन लगी तब मन भी काबू होवेगा।
कहैं अन्ध शाह सतगुरु किरिपा तब गर्भ में आय न रोवेगा।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो तहँ दोनो कर्मन खोवेगा।
सन्मुख पितु मातु की झाँकी हो तन त्यागि अवध सुख सोवेगा।४।