१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९३)
पद:-
जनम भूमि प्रभु पुरी सुहाई। उत्तर दिशि सरयू सुख दाई॥
मंजन ते निर्मल ह्वै जाई। अन्धे कहैं न जग चकराई॥
सतगुरु से सुमिरन बिधि पाई। तन मन प्रेम से नित प्रति ध्याई॥
ध्यान प्रकाश समाधि में जाई। जियतै कर्म रेख कटवाई।४।
अनहद की हो बिमल बधाई। हर शै से हरि नाम सुनाई।
कुंडलिनी षट चक्र जगाई। सातौं कमल खिलैं फर्राई॥
सुर मुनि के संग हरि जस गाई। निर्भय औ निर्बैर कहाई॥
सिया राम छबि सन्मुख छाई। को बरनै मुख बोल न आई।८।