१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९४)
पद:-
चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजै तन नहिं संसारा॥
यह श्री तुलसीदास पुकारा। रामायन लिखि कीन्ह प्रचारा॥
पढ़ि सुनि गुनि चेतैं नर दारा। ते नहिं आवैं जगत मंझारा॥
सतगुरु करै भजै निशिबारा। दिब्य दृष्टि तब होय अपारा।४।
राम नाम धुनि हो एकतारा। हर दम सीताराम निहारा।
सुर मुनि मिलैं करैं जै कारा। कहैं भये सियराम का प्यारा॥
इस शरीर में अवध संवारा। धन्य धन्य धनि धनि करतारा॥
शाँति दीन हो उसे सुतारा। अन्धे कहैं मगन निशि बारा।८।