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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९९)


पद:-

काल कर्म ईश्वर को बिरथा काहे दोष लगाय रहे।

पुरस्वारथ में बड़ी शक्ति सतगुरु यह भेद बताय रहे।

धुनि ध्यान प्रकास समाधी हो षट रूप सामने छाय रहे।

अनहद बजै छकौ घट अमृत सुर मुनि उर लिपटाय रहे।४।

नागिनि जगै चक्र षट नाचैं सातौं कमल फुलाय रहे।

भाँति भाँति की गमकैं स्वरन ते निकलैं सुख उमड़ाय रहे।

राम कृष्ण औ बिष्णु लोक से तार खटा खट आय रहे।

अन्धे कहैं गुनो तो भक्तौं सब के हित पद गाय रहे।८।