१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१००)
पद:-
श्याम बिहारी मोरन के संग नाचैं माखन खाँय खिलावैं।
मुरली कूकि राग को छेड़त शब्द शब्द स्पष्ट सुनावैं।
सखा सखी ब्रज जन सब देखत प्रेम में मुख से बोलि न पावैं।
सुर मुनि नभ ते जै जै बोलैं भाँति भाँति के फूल गिरावैं।
अन्धे कहैं करो अब सतगुरु नाना बिधि के खेल दिखावैं।
अन्त छोड़ि तन हरि पुर राजौ गर्भ बास का दुःख मिटावैं।६।