१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१०१)
पद:-
श्री कृष्ण चन्द सुख कन्द साथ भृष भान नन्दनी झूलैं।
सब सखियाँ हिलि मिलि देत झूक, क्या मधुर मधुर है उनकी कूक,
वसुदेव सुवन गले डाले हाथ, भृष भान नन्दनी झूलैं।
अन्धे कहैं सुर मुनि नभ में छाय, फेकैं फूलन को कर उठाय,
जै जै की धुनि करि फूलैं।३।
शेर:-
श्री हरि कृपा ते सतगुरु मिलते। सतगुरु कृपा ते श्री हरि मिलते॥
अन्धे कहैं जौन नहिं मनते, ते जग जाल क ताना तनते।२।
चौपाई:-
अन्धे कहैं करो परस्वारथ। यह तन गुनौ न होय अकारथ॥
पुरस्वारथ करि लो परमारथ। जीति लेव घट में महाभारथ।२।