१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१०८)
पद:-
चौबिस घंटा में साठि घड़ी।
सतगुरु करि सुमिरौ होहु बरी।
या के अन्दर होत काम सब बिन चेते कैसे सुधरी।
समय स्वांस अनमोल जात है दिन पर दिन भीजत गुदरी।
राम सिया हर दम रहैं सन्मुख नाम कि धुनि तन मन में ठरी।
अन्धे कहैं अन्त निजपुर हो सब के हित कही बात खरी।६।