१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१०९)
पद:-
मम कुल राम भजन की रीती।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो छूटि जाय अनरीती।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि राम सिया से प्रीती।
औसर चूकि अन्त पछितैहौ वयस जात है बीती।
शान्ति दीनता प्रेम से भक्तों लागि जाव करि धीती।
अन्धे कहैं अन्त निज पुर हो जग बारू की भीती।६।
दोहा:-
मौत और भगवान से डरता सो जानो सुखदाई है।
अन्धे कहैं जौन नहि डरता सो मानो दुखदाई है॥
अन्दर से जो उठत हैं उलटे सीधे शब्द।
सो हम मुख से कहत हैं और न जानै मद्द।२।
चौबोला:-
और न जानै मद्द हद्द बेहद्द कहाता।
नाम रूप लै तेज बिना सतगुरु को पाता।
मुक्त भक्त सो जान एक ही मद्द से नाता।
अन्धे कहैं सुनाय कढ़त यह मुख से बाता।२।