१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१११)
पद:-
आये थे क्या करन लगे क्या करन यहँ पर।
अन्त छोड़ि तन चलो बतावोगे क्या वहँ पर।
शुभ अशुभ कर्म जो होत लिखैं सब जानत वँह पर।
अन्धे कह जस किह्यो सुःख दुख मिलिहै वँह पर।४।
दोहा:-
ऐसा कर्म क खेल है कर्मै कहत प्रधान।
अन्धे कह सतगुरु कह्यो सो हम कीन बखान॥
सतगुरु मेरे जानिये शंकर जी हनुमान।
जिनकी किरपा दृष्टि ते खुलिगे आँखी कान।२।