१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(११२)
पद:-
मन मोहन की अँखियाँ कटीली।
जसुमत कैसे कजरा आँजैं प्वटरी जात न छीली।
सुर मुनि मातु की जै जै करते भावावेस रसीली।
अन्धे कहैं लखै सो भक्तौं मन मति नाम नसीली।४।
दोहा:-
भक्तन के लरिका रहैं हर दम श्री भगवान।
अन्धे कह सुर मुनि कह्यो वेद पुरान बखान॥
दोहा:-
राम श्याम बिष्णु भजो कमला राधे सीता।
अन्धे कहैं मुक्ति भक्ति प्रेम हो पुनीता॥
शेर:-
मुरशिद मुरीद सच्चे ते हैं खोदा के बच्चे।
अन्धे कहैं जे कच्चे ते खात फिरते गच्चे॥
दोहा:-
पांच चोर तन में रहैं संग में एक छिछोर।
अन्धे कह किस बिधि बचो मानत नहि निशि भोर॥