१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(११४)
पद:-
वेद औ वेदान्त सारे नाम के अन्दर भरे।
सतगुरु बिना कैसे लखै मन पर कपट पासा परे।
जे जानिगे ते मानिगे जियतै में भव सागर तरे।
अन्धे कहैं पढ़ि सुनि गुनै यह बचन सब के हित खरे।४।
पद:-
वेद औ वेदान्त सारे नाम के अन्दर भरे।
सतगुरु बिना कैसे लखै मन पर कपट पासा परे।
जे जानिगे ते मानिगे जियतै में भव सागर तरे।
अन्धे कहैं पढ़ि सुनि गुनै यह बचन सब के हित खरे।४।