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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(११३)


पद:-

हमै जो मन को दे देवै भजन की बिधि बतावैं हम।

कथा औ कीर्तन पूजन पाठ सेवा सिखावैं हम।

देव मुनि संग में बैठैं अमी रस को पिलावैं हम।

ध्यान धुनि तेज लय पावै रूप षट को लखावैं हम।४।

नागिनी को जगा करके छइव चक्कर नचावैं हम।

कमल सातौं खिला करके महक सुन्दर सुंघावैं हम।

बजै अनहद मधुर घट में उसे हर दम सुनावैं हम।

कहैं अन्धे छुटै तन जब तुरत निज पुर पठावैं हम।८।