१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(११६)
पद:-
जप जग्य करो सतगुरु से जानि कोइ ऐसा दूसर कर्म नहीं।
सन्मुख में सीताराम लखौ जो सदा एक रस गर्म नहीं।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो जियतै तरि जावो भर्म नहीं।
अन्धे कह तन अनमोल मिला हा तुम को आती शर्म नहीं।४।
पद:-
जप जग्य करो सतगुरु से जानि कोइ ऐसा दूसर कर्म नहीं।
सन्मुख में सीताराम लखौ जो सदा एक रस गर्म नहीं।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो जियतै तरि जावो भर्म नहीं।
अन्धे कह तन अनमोल मिला हा तुम को आती शर्म नहीं।४।