१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१२१)
पद:-
पकड़ै बिना भजन के हव्वा।
सतगुरु से जप भेद जानि जो तन मन प्रेम में तव्वा।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से सुनि पव्वा।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि संग में चारेउ दव्वा।४।
हर दम सन्मुख दर्शन देवैं छिन छिन में कहैं बव्वा।
अमृत पियै सुनै घट अनहद सुर मुनि गहि उर लव्वा।
नागिनि जगै चक्र सब नाचैं सातों कमल खिलव्वा।
अन्धे कहैं अन्त निज पुर हो आवा गमन मिटव्वा।८।
दोहा:-
अनहद बाजा सुने ते मन बिचलित नहि होय।
अन्धे कह मानो सही छूटि जात है दोय॥