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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१३६)


पद:-

मुरली काहे रहि रहि बाजत।

बिरहा बिथा में सब सखि व्याकुल तू हरि अधर पै राजत।

सुर मुनि सुनि सुनि हिय हर्षावैं फेंकैं सुमन औ गाजत।

अन्धे कहैं धन्य सो प्राणी जो हरि नाम में माँजत।४।


दोहा:-

चरन कमल में मन लगै हर दम हरि दर्शांय।

गंगा जमुना सरस्वती अन्धे कहैं नहाय॥