१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१४१)
पद:-
सुमिरन बिन आना जाना। पढ़ि सुनि कै कथते ज्ञाना॥
मन माना ताना ताना। अन्धे कहैं यह अज्ञाना॥
वँह चलिहै नहीं बहाना। जब खुलि जाँय आँखी काना॥
तब जानो ठौर ठिकाना। सतगुरु ढिग यह परवाना।८।
पद:-
सुमिरन बिन आना जाना। पढ़ि सुनि कै कथते ज्ञाना॥
मन माना ताना ताना। अन्धे कहैं यह अज्ञाना॥
वँह चलिहै नहीं बहाना। जब खुलि जाँय आँखी काना॥
तब जानो ठौर ठिकाना। सतगुरु ढिग यह परवाना।८।