१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१४२)
पद:-
कितने मही पै आय कमा के चले गये।
सतगुरु से जानि मारग सुख पा के चले गये।
सुर मुनि के संग हरि जस गा के चले गये।
अनहद को सुनि के अमृत पा के चले गये।
नागिनि औ चक्र कमल जगा के चले गये।५।
सन्मुख में रूप हरि का छा के चले गये।
धुनि नाम तेज लय में समा के चले गये।
दाया औ धर्म करि के करा के चले गये।
घर घर से बाछ लाय लुटा के चले गये।
पूजन व पाठ करि के कराके चले गये।१०।
जप यज्ञ हवन करि के कराके चले गये।
कीर्तन कथा को सुनि के सुना के चले गये।
पूछा जो दीन बनि के बता के चले गये।
कितने असार सुःख दिखा के चले गये।
कितने तो पाप बीज जमा के चले गये।१५।
कितने तो तीर्थ घूमि घुमा के चले गये।
कितने तो दुख अपार उठा के चले गये।
औरों को दुःख दे के दिला के चले गये।
कितने तो आय बचि के बचा के चले गये।
कितने जमन के हाथ बिका के चले गये।२०।
निज को गँभीर बेल वंधा के चले गये।
कितने सिंहासन चढ़ि के हँसा के चले गये।
परिवार मित्र नात रुला के चले गये।
कितने जवारि ग्राम हँसा के चले गये।
कितने तो डंड बैठक बता के चले गये।२५।
कितने तो ताल ठोंकि लड़ा के चले गये।
कितने तो सूर बीर बढ़ा के चले गये।
कितने तो अस्त्र शस्त्र सिखा के चले गये।
कितने तो जल अगिन में समा के चले गये।
कितने तो मही खोदि लुका के चले गये।३०।
कितने तो शीश काटि कटा के चले गये।
कितने मही पै आय थुका के चले गये।
कितने शरम से मूँह को छिपा के चले गये।
कितने ज़हर को खाय मूँह बाके चले गये।
कितने तो कर्ज ले के चुका कर चले गये।३५।
कितने तो धोका दे के बका कर चले गये।
कितने तो जंत्र मंत्र सिखा कर चले गये।
कितने तो अन्धे पागल बना कर चले गये।
कितने तो मंत्र फूँक जिला कर चले गये।
कितने करेजा काढ़ि औ खा कर चले गये।४०।
कितने ज़मी खुदाय तुपा कर चले गये।
कितने तो जल में फेंकि फेंका कर चले गये।
कितने अगिनि में फूँकि फुँका कर चले गये।
कितने तो तुरत मारि दिखा कर चले गये।
कितने तो मास नोचि नोचा कर चले गये।४५।
दीनों को देखि कितने दया कर चले गये।
कितने तो देखि देखि चुपा कर चले गये।
कितने तो भीख माँगि मंगा कर चले गये।
जारी........