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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (१४२)


दोहा:-

सतगुरु से उपदेश लै सुमिरै तन मन लाय।

अन्धे कह साधक वही प्रेम के रंग रंगि जाय॥


सोरठा:-

प्रेम में लीन नहाय परमानन्द में मगन है।

अन्धे कहैं सुनाय गुनिये कैसी लगन है॥