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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥

जारी........

कितने तो आय माँगि औ खा कर चले गये।

कितने तो लूटि मारि ले आकर चले गये।५०।

कितने तो जेल फाँसी पा कर चले गये।

कितने तो डाकू चोर बना कर चले गये।

कितने तो ठगि ठगाय पछिता कर चले गये।

कितने तो अपने तन को पवा कर चले गये।

भूखन को कितने देख भगा कर चले गये।५५।

कितने तो जौन माँगा दिला कर चले गये।

कितने न खाया खरचा दबा कर चले गये।

कितने तो दूसरों को लिखा कर चले गये।

देवों में सारी सम्पत्ति लगा कर चले गये।

कितने तो नाम जग में खुदा कर चले गये।६०।

अन्धे कहैं जै कारे पितु माँ के चले गये।

वै हो गये स्वीकार जो आ के चले गये।६२।