१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (१४९)
पद:-
सतगुरु सरनि में जिसने मन मति लगाई होगी।
अन्धे कहैं उसी की दोउ दिसि बधाई होगी।
धुनि ध्यान तेज लय में जाकर समाई होगी।
शुभ अशुभ कर्म भक्तों जियतै मिटाई होगी।
अनहद बिमल मधुर सुनि अमृत पिलाई होगी।
सुर मुनि के संग बैठक हरि जस गवाई होगी।६।
नागिनि जगा के लोकन फेरी लगाई होगी।
चक्कर घुमा के सारे कमलन खिलाई होगी।
दोनो स्वरन से महकैं सुन्दर उड़ाई होगी।
प्रिय श्याम की छटा छबि सन्मुख में छाई होगी।
नैनो से नैन छिन छिन हंसि हंसि भिड़ाई होगी।
तन त्यागि चढ़ि सिंहासन निज पुर को धाई होगी।१२।