१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (१६२)
पद:-
राम कहने का मज़ा पाते हैं हम।
अन्धे कहैं सतगुरु कृपा से सत्य लिखवाते हैं हम।
नाम की धुनि हर समय हर शै से सुनि पाते हैं हम।
हर समय षट रूप सन्मुख लखते मुशक्याते हैं हम।
ध्यान औ परकाश लय में जाय मिलि जाते हैं हम।५।
बाजा बजै अनहद सुनै सुर मुनि से बतलाते हैं हम।
कमल नागिन चक्र जागै खुशबू में माते हैं हम।
तन तो अजर औ अमर है सब लोकों को जाते हैं हम।
भूख प्यास न शीत ऊसन हरि का जस गाते हैं हम।
नारि नर प्रभु को भजो कर जोरि समुझाते हैं हम।१०।