१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१६३)
पद:-
अन्धे कहैं भजौ नित गुनि गुनि। सतगुरु से लो मंत्र को सुनि सुनि॥
तन मन को लो जियतै भुनि भुनि। माया चोर सकैं नहिं घुनि घुनि॥
हर शै से हो नाम कि धुनि धुनि। सिया राम को निरखौ पुनि पुनि॥
यही भजन करते सब ऋषि मुनि। तप धन खूब लेहु धरि चुनि चुनि।८।