१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१६६)
पद:-
मेरे मन चुप्प ह्वै रहिये हमैं सतगुरु करि आने दो।
पड़ा भव जाल के दुख में खोज प्रभु का लगाने दो।
जरा सी करि निगाह देवैं मुझे नटका पकड़ाने दो।
नाम की देंयगे दारू चखैं आनन्द आने दो।
जगै नागिनि चलै संग में तबक चौदह फिरि आने दो।
सुधैं षट चक्र भन्नावैं कमल सातौं खिलाने दो।
महक दोउ स्वरन से निकलै मस्त ह्वै सर हिलाने दो।
पियै कौसर बजै अनहद देव मुनि संग बतलाने दो।
धुनी रंकार की होती वो हर शै से सुनाने दो।
ध्यान परकास लै में जाय के सुधि बुधि भुलाने दो।१०।
छटा षट रूप की हर दम मेरे सन्मुख में छाने दो।
मिलै संसार से फुरसत लिखा बिधि का मिटाने दो।
रहैंगे हर समय जग में मगन हरि चरित गाने दो।
दीन जो भजन हित आवै उसे बिधि वत बताने दो।
तरक्की दिन पै दिन होवै मुझे ऊपर चढ़ाने दो।१५।
मेल हम तुम करैं प्यारे चोर तन से भगाने दो।
जियत ही होय सब करतल दया हो अब न ताने दो।
कहैं अन्धे बचन मानो रीति कुल की पै आने दो।१८।