१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७३)
पद:-
जै जै बोलौ गौरंग नित्यानन्द की।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो हर दम जोड़ी लखौ आनन्दकन्द की।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि हर शै से हो रं रं छन्द की।
अन्धे कहैं अन्त निजपुर हो जो है पुरी सिया रामचन्द्र की।४।
दोहा:-
पुरी दरशिहै दिब्य जब पाप जाँय सब भागि।
अन्धे कह सतगुरु शरनि जाय सो जावै जागि॥