१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७२)
पद:-
जैहौ कहाँ सुमिरन बिन सुनिये।
महा कष्ट है नर्क में जीवन हर दम दुख में भुनिये।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानि के मन को नाम पै धुनिये।
ध्यान प्रकास समाधी होवै सन्मुख सिय हरि चुनिये।
राम भजन है सार जगत में भाषत वेद शास्त्र सुर मुनिये।
श्वाँसा समय शरीर अमोल है बिनय अन्ध की गुनिये।६।
शेर:-
करम धरम औ शरम भरम सब बहैं प्रेम सरिता में।
अन्धे कहैं दशा विज्ञान की जानै सो परिता में॥