१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७९)
पद:-
सतगुरु करि सुमिरौ ररंकार। हैं शून्य समाधि में निराकार॥
सरगुण निर्गुण औ निर्विकार। सब में औ सब से रहत न्यार॥
उत्पति पालन परलय संहार। सब सुःखौं के हैं यही सार॥
बोलत हर दम हर शै से तार। जो जानि जाय सो भव से पार॥
अन्धे की सुनिये अब पुकार। बल बुद्धि हीन मैं अति गंवार।१०।