१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१८०)
पद:-
आरति श्री सतगुरु की कीजै।
मुक्ति भक्ति करतल करि लीजै॥
नाम कि धुनि परकास समाधी रूप सामने कीजै।
सुर मुनि संत मिलन को आवैं अमृत घट में पीजै।
नागिनि चक्र कमल सब जागैं खुशबू बहु बिधि लीजै।
अन्धे कहैं अन्त सत लोकै चढ़ि बिमान चलि दीजै।६।