१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१८२)
दोहा:-
तहस नहस सब चोर हों बहस छोड़ि धरु ध्यान।
साहस कभी न त्यागिये ढाढ़स से हो ज्ञान॥
मुक्ति भक्ति जियतै मिलै खुलि जाँय आँखी कान।
सखा सखी संग में लिये रहस करैं भगवान॥
अन्धे कह तन छोड़ि के निजपुर करो पयान।
राम रूप ह्वै कर वहाँ बैठो सुभग बिमान।३।