१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१८१)
दोहा:-
सूरति शब्द समाइ गइ नाम सनेही जान।
अन्धे कह सतगुरु बचन आवागमन नसान॥
दोहा:-
युक्ति मुक्ति औ भक्ति ज्ञान सब अपने ही हैं पास।
अन्धे कह सतगुरु करो सिखौ मिटै भव त्रास॥
ररंकार की धुनि सुनो होय समाधि प्रकास।
अन्धे कह हर दम दरस अन्त अचलपुर बास॥