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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१८८)


पद:-

ऊसर बरषा त्रण नहिं जामा। सन्त हृदय जिमि उपजै न कामा॥

सतगुरु से लै राम क नामा। सुमिरन में अर्पौ मन जामा॥

ध्यान धुनी परकास तमामा। लय में करो कर्म दोउ खामा॥

सन्मुख राम सिया बसु जामा। निरखौ संग में सुर मुनि आमा॥

अन्धे कहैं संग सब सामा। जियति जानि चलिये सुख धामा॥

है अनमोल न लागै दामा। सच्चे ग्राहक का यह कामा॥


चौपाई:-

नीमन पुरुष नीमनी नारी। अन्धे कहैं न होवै ख्वारी।

लोना पुरुष औ लोनी नारी। अन्धे कहैं न होवै ख्वारी॥