१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१९५)
पद:-
सतगुरु किरपाल दयाल प्रभू हम को एक आस तुम्हारी है।
तुमरे सम दूसर और नहीं को पतितन को हितकारी है।
तुम बंधन भव का काटि देत जियतै सुखमय नर नारी हैं।
अन्धे कह सन्मुख छाय रही झाँकी तुमरी बलिहारी है।४।
पद:-
सतगुरु किरपाल दयाल प्रभू हम को एक आस तुम्हारी है।
तुमरे सम दूसर और नहीं को पतितन को हितकारी है।
तुम बंधन भव का काटि देत जियतै सुखमय नर नारी हैं।
अन्धे कह सन्मुख छाय रही झाँकी तुमरी बलिहारी है।४।