१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१९६)
शेर:-
दुलारे प्यारे सिय राम के हैं जे ख्याल हर दम जमाय रहेते।
कहैं यह अन्धे गरभ न झूलैं निजधाम उनको बिठाय रहेते॥
शेर:-
कैद से फुरसत मिली जब गर्भ का रिन चुक गया।
अन्धे कहैं सुनि गुनि भजौ आना व जाना रुक गया॥
न तुम हम में न हम तुम में तो तुम हम से कहौगे क्या।
कहैं अन्धे बिना सुमिरन के तन मन से लहौगे क्या।२।
दोहा:-
हरि सुमिरन जे नहिं करैं हबड़ी के संग चोर।
रबड़ी मल की लिहे कर मुख में देवै घोर॥
अन्त समय जमदूत आ गबड़ी खेलैं तोर।
चमड़ी से करि देंय बिलग ऐसे हैं बर जोर॥
दमड़ी तक नहिं नाम की पीटैं करि करि सोर।
अन्धे कह फिरि नर्क में जाय के देवैं बोर।३॥