१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१९७)
पद:-
भक्तौं आवै जाय सो माया।
चौरासी का चक्कर तब तक जब तक गर्भ बकाया।
सतगुरु करो भजन बिधि जानो सोधन होवै काया।
सारे चोर शाँति ह्वै बैठैं मन उनसे हटि आया।
नाम के संग रंगै फिरि ढँग से मुद मंगल दरसाया।५।
अमृत पिऔ सुनौ घट बाजा मधुर मधुर चटकाया।
सुर मुनि मिलैं उछंग उठावैं जय जय कहि गुन गाया।
नागिनि जागि लोक चौदह में सुख से तुम्हैं घुमाया।
षट चक्कर तब चलैं दरस भै सातौं कमल फुलाया।
अद्भुद महक स्वरन से जारी रोम रोम पुलकाया।१०।
कंठ रुँधि जाय बोल न फूटै नैन नीर झरि लाया।
हालै शीश बदन थरार्वै पलक भाँजि नहिं पाया।
लय परकास नाम धुनि जारी हर शै से भन्नाया।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में छबि छाया।
तुरिया तीत दशा यह जानो सहज समाधि कहाया।
अन्धे कहैं अन्त साकेतै चढ़ि सिंहासन धाया।१६।