२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२११)
शेर:-
जियति जिंद ब जिंद जानौ जिनके दाया तन नहीं।
अन्धे कहैं जम पुर में जैसे मानते जम गन नहीं॥
मृग त्रसना ज्यों ओस क मोती त्रृणवत है जग सपना।
अन्धे कहैं बिना हरि सुमिरे चौरासी में टपना॥
नीच बुद्धि के नीचे लड़के ऊँच बुद्धि के ऊँचे।
अन्धे कहैं गती ऊँचन की नीच नर्क जाँय कूचे।३।