२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२१७)
पद:-
धीरे चलो सुकुमार प्रिय प्यारी।
सखा सखी सब ब्याकुल बैठे नैन बहै जलधार प्रिया प्यारी।
तुम बिन रहस होयगो कैसे प्राण के प्राण हमार प्रिय प्यारी।
श्यामा श्याम के संग चलीं जब सखा सखी चटकार प्रिय प्यारी।
हिलि मिलि रहस करन सब लागे राधे कि ओर निहार प्रिय प्यारी।५।
छम छम छम छम घुँघरू बाजैं बीच बीच बलिहार प्रिय प्यारी।
नाना साज बजैं तहँ संग में मधुर मधुर गुमकार प्रिया प्यारी।
सावन है मन भावन भक्तों जल बरसैं एकतार प्रिय प्यारी।
ताल तान धुनि स्वर सम मानो गावत राग मलार प्रिय प्यारी।
बंशी मोहक स्वर से बाजै सुर मुनि सब मतवार प्रिय प्यारी।१०।
नभ ते फूलन की झरि लावैं बोलैं जय जय कार प्रिया प्यारी।
सतगुरु करै लखै सो लीला सन्मुख हों निशि बार प्रिया प्यारी।
आवागमन क काम जाय कटि जो बिधि लिखा लिलार प्रिया प्यारी।
जे जनि चेति जियति में जागे तरिगा सब परिवार प्रिया प्यारी।
उनकी सरवरि कौन सकत करि अंधें कहैं पुकार प्रिय प्यारी।
अन्त छोड़ि तन गये अचलपुर बैठि गये चुपमारि प्रिया प्यारी।१६।