२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२२०)
पद:-
ज़माना उसका है अच्छा जो हरि सुमिरन में लागा है।
कहैं अंधे जो नहिं चेता वो दोनो दिसि ते नागा है।
सुखी वह किस तरह होवै बंधा माया के धागा है।
कहैं अंधे गहैं जमगण बकैं तू तो अभागा है।४।
घसीटत लै चलैं नर्कै बाँधि खम्भे में टाँगा है।
कहैं अंधे न कल पल भरि भरैं मुख औंटि रांगा है।
करै सतगुरु भजै हर दम मिलै भक्ती क बागा है।
कहैं अंधे जियति तरिगा वही सोते से जागा है।८।