२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२१९)
पद:-
न हम ज्ञानी न हम ध्यानी गुरु किरपा से कछु जानी।
किया तन मन कि कुरबानी गया धुनि तेज लय सानी।
लखैं प्रभु संग महरानी छटा सन्मुख रहै तानी।
कहैं अंधे वो अज्ञानी जो नर तन पाय अभिमानी।४।
पद:-
न हम ज्ञानी न हम ध्यानी गुरु किरपा से कछु जानी।
किया तन मन कि कुरबानी गया धुनि तेज लय सानी।
लखैं प्रभु संग महरानी छटा सन्मुख रहै तानी।
कहैं अंधे वो अज्ञानी जो नर तन पाय अभिमानी।४।