२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२२७)
पद:-
मेरे पर प्रभु तेरी दाया तेरे पर सुधि मेरी हो।
मुक्ति भक्ति तब तो मिलि जावै अंधे कहैं न देरी हो।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि आपको सन्मुख हेरी हो।
आना जाना प्रेम में साना छूटी जग की फेरी हो।४।
सत्गुरु से सुमिरन बिधि लीजै बाजै दोउ दिसि भेरी हो।
यही भजन सब से है सच्चा सुर मुनि कहते टेरी हो।
तन मन से जब लागि जाव तब चोर सकैं नहिं घेरी हो।
अन्त समय पछितैहौ रोइहौ जम गहि देंय दरेरी हो।८।