२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२२८)
पद:-
सा स्वर बास करत त्रिकुटी पर रे नासा पर जानो।
गा का बास कंठ में सोहत मा हिरदय में जानो।
पा का बास नाभि में देखो धा इन्द्री पर जानो।
गुदा चक्र पर बास है नी का सातों स्वर परमानो।
ज्ञानेश्वर कहैं हरि सुमिरन बिन मिलै न ठीक ठेकानो।
सत्गुरु से सुमिरन विधि लेकर तनमयता में सानो।६।