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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२६३)


दोहा:-

सूरति लागी शब्द पर नवों द्वार भे बंद।

अंधे कह सन्मुख लखौ हर दम आनन्द कंद॥

सूरति लागी शब्द पर खुलिगा दसवां द्वार।

अंधे कह सन्मुख रहैं श्री सहित सरकार॥

सूरति लागी शब्द पर भयो महा परकास।

अंधे कह जियते मिटी काल मृत्यु की त्रास॥

सूरति लागी शब्द पर भई समाधी जान।

अंधे कह जियते कटी कर्मन की गति मान॥

सूरति लागी शब्द पर ररंकार धुनि होय।

अंधे कह हर दम मगन छूटि गई मन दोय।५।

सूरति लागी शब्द पर षट चक्कर घुमराँय।

अंधे कह सातों कमल फूलें महक उड़ाँय॥

सूरति लागी शब्द पर कुँडलिनी जगि जाय।

अंधे कह चौदह तबक जाय के दीन दिखाय॥

सूरति लागी शब्द पर सुर मुनि दर्शन दीन।

अंधे कह निज कर उठा सबहुन जै जै कीन॥

सूरति लागी शब्द में सारी श्रृष्टि क ध्यान।

अंधे कह सब सृष्टि में निज को लो पहचान॥

सूरति लागी शब्द में खुलिगे चारौं ध्यान।

अंधे कह सो मानिये जा के आँखी कान।१०।

सूरति लागी शब्द में खुलिगे चारौं द्वार।

मुक्ति भक्ति जियतै मिली अंधे कहैं पुकार॥

सूरति लागी शब्द में अनहद नाद सुनाय।

अंधे कह तब मन मगन नेक नहीं बिलगाय॥

सूरति लागी शब्द पर करी अमी रस पान।

अंधे कह घट में भरा सागर एक महान॥

सूरति लागी शब्द में भई दशा विज्ञान।

अंधे कह सुधि बुधि गई बाल भाव भा जान॥

सूरति लागी शब्द में पांच तत्व चमकांय।

अंधे कह तन चारि जो विलग विलग दिखलांय।१५।

सूरति शब्द कि जाप यह भक्तौं अगम अपार।

अंधे कह सतगुरु शरनि, सो कछु जानन हार॥

अजपा या को कहत हैं कर मुख हिलै न नैन।

अंधे कह सब जुग कहा सुर मुनि सब हित बैन॥

सूरति शब्द के मार्ग सम सुलभ मार्ग नहिं कोय।

अंधे कह सतगुरु शरनि पावत भक्तौं कोय।१८।


दोहा:-

हाकिम वही है उसका वही हुकूमत करता है।

अंधे कहैं बिना सुमिरन के जीव जन्मता मरता है।१।

सूरति शब्द की जाप से सब में ब्रह्म दिखाय।

अंधे कह सुमिरन करै सो जियतै लखि पाय।२।