२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२६२)
पद:-
दुर्बल बने क्यों घूमते अति बल तुम्हारे पास है।
अंधे कहैं सतगुरु करो झूठी जहाँ की आस है।
नाम की धुनि लय दशा क्या होत अजब प्रकास है।
षट रूप हर दम सामने बोलै तु सच्चा दास है।४।
नागिनि जगै चक्कर चलैं कमलन क होत विकास है।
तन मन मुअत्तर महक से जो उड़ रही हर सांस है।
अनहद सुनो अमृत चखौ घट झरत बारह मास है।
तन छोड़ि चल साकेत लो जहँ अमित भक्तन बास है।८।