२६५ ॥ श्री खुशाली शाह जी ॥
पद:-
अरे मन शान्त ह्वै बैठो मुझे गुरु पास जाने दो।
बहुत दुख सह हुआ रोगी पता हरि का लगाने दो।
करैं प्रभु दीन पै दाया जरा नाड़ी दिखाने दो।
नाम की जाय मिलि बूटी चढ़ै रंग मुझको खाने दो।
सुनै अनहद कि धुनि प्यारी अमी पी मुस्कराने दो।५।
देव मुनि गृह निमंत्रण हो दिब्य भोजन को पाने दो।
जगे नागिन चलैं संग में लोक सब घूमि आने दो।
चक्र षट बेधि घुमरावैं कमल सातों खिलाने दो।
महक क्या स्वरन से निकले मस्त ह्वै सर हिलाने दो।
तार सब लोकों से आवैं खटा खट उनको आने दो।१०।
धुनी एक तार जारी हो रगन रोवन सुनाने दो।
ध्यान परकास लय में जाय कर सुधि बुधि भुलाने दो।
मिलै संसार से फुरसत करम की गति मिटाने दो।
छटा षट रूप की हरदम मेरे सन्मुख में छाने दो।
भिखारी दीन जो आवै उसे बिधिवत बताने दो।१५।
तरक्की हो मेरी तेरी उसे आगे बढ़ाने दो।
लखैं सब सृष्टि में निज को सृष्टि निज में दिखाने दो।
जियति करि लेय सब करतल अन्त निज धाम जाने दो।
रहै जब तक जगत में तन सदा हरि जस को गाने दो।
खुशाली शाह की बिनती कृपा हो अब न ताने दो।२०।