२६६ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥
पद:-
सुरतिया शब्द पर जिसकी लगी रहती लगी रहती।
ध्यान परकास लै में जा पगी रहती पगी रहती।
कमल औ चक्र कुँडलिनी जगी रहती जगी रहती।
छटा खट रूप की सन्मुख टँगी रहती टँगी रहती।
देव मुनि सँग सतसंगति सगी रहती सगी रहती।
कहैं अंधे अजा संग से भगी रहती भगी रहती।६।