२६६ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२६७)
पद:-
सूरति लगी जब शब्द पर बस काम हो गया।
अंधे कहैं असुरन क दल चुप चाप सो गया।
धुनि नाम तेज लै दशा बिधि लेख खो गया।
सन्मुख में रूप षट का दीदार हो गया।४।
शेर:-
सतगुरु बचन पै जिसका विश्वास हो गया।
अंधे कहैं बस जान लो वह पास हो गया।
सूरति शबद के मार्ग को जो जान कर हटा।
अंधे कहैं तन छोड़ि कै वह नर्क में सटा।४।