२६६ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२६९)
पद:-
भजन करने का मज़ा पाते हैं वह।
अंधे कहैं सतगुरु शरनि मन नाम पै लाते हैं वह।
बिधि लेख को निज भाल से जियतै में कटवाते हैं वह।
ध्यान धुनि परकास लै में जाय कर माते हैं वह।
अनहद सुनैं अमृत पियैं सुर मुनि से बतलाते हैं वह।
नागिनि जगा सब लोकों में फेरी लगा आते हैं वह।६।
षट चक्र चालू करिके सातौं कमल उलटाते हैं वह।
महक से हो कर मगन रहि रहि के मुशक्याते हैं वह।
षट रूप की अद्भुद छटा छबि सामने छाते हैं वह।
दीनता औ शाँति गहि पूछै तो बतलाते हैं वह।
एकांत में इस भेद को जा कर के सिखलाते हैं वह।
तन छोड़ि कर के यान चढ़ि साकेत को जाते हैं वह।१२।