२६६ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२७०)
चौपाई:-
अहह तात लछिमन बड़ भागी। राम पदारबिन्दु अनुरागी॥
सतगुरु करि सुमिरन में लागी। तन मन प्रेम में दीन्हेव पागी॥
ब्रह्म अगिन वाकी गई जागी। बिधि का लिखा जियति में दागी॥
कमल चक्र कुँडलिनी जागी। सुर मुनि मिलैं लिपटि उर लागी।४।
राम नाम की धुनि है जागी। हर शै से हर दम रटि लागी।
राम सिया सन्मुख में तागी। तेज समाधि में सुधि बुधि टाँगी॥
अन्त छोड़ि तन निजपुर भागी। अंधे कहैं जगत को त्यागी।७।
पद:-
अनहद बाजा सुनि रहा अमृत का हो पान।
अंधे कह हरि शरनि भा ज्ञान ध्यान विज्ञान॥