२७४ ॥ श्री गोस्वामी तुलसी दास जी ॥
पद:-
कलयुग काम धेनु रामायन।
बछरा सन्त पियति निसि बासर,सदा रहत मुद दायन।
ज्ञान विराग श्रिंग दोउ सुन्दर, नेत्र अर्थ समुझायन।
चारिव खुर सोइ मुक्ति मनोहर, पूँछ परम पद दायन।४।
चारौं थन सोइ चारि पदारथ, दूध दही बरसायन।
शिव ने दुही, दुही सनकादिक, याग्यवलिक मन भायन।
निकली बिपुल बिटप बन चरि के, राम दास चरवायन।
तुलसी दास गोबर के पाछे सदा रहत पछुवायन।८।