२८० ॥ श्री राम दीन जी॥
जारी........
दया के सागर मातु सब, कृष्णदास कहैं मान।
छिन छिन में सुधि लेत हैं, बालक अपनो जान॥
चाबे को चाबैं पशू, उनका यह नित काम।
मानुष का तन पाइकै जपैं निरन्तर नाम॥
नारी सारी सम लख्यौं, गुरु प्रताप ते जान।
धन को धरती जानिये, मानो बचन प्रमान।५।
सुनत कहत जानैं नहीं, या से मानैं दूर।
कृष्णदास कहैं सब जगह, राम रमे भरपूर॥
साहब के नायब हैं, जिनका नाम है काल।
कृष्णदास कहैं भजन बिन, जाय काल के गाल॥
निर्गुण सर्गुण आप ही, निर्विकार निरधार।
कृष्णदास गुरु ज्ञान बिन, सबै बात बेकार॥
चाम चाम में मिलि गयो, प्रगट्यौ चाम ते चाम।
कृष्णदास हरि भजन बिन, कौड़ी का नहिं चाम॥
अगणित युगन ते होत हैं, उत्पति परलय मान।
कृष्णदास कहैं अमर हम, सतगुरु दीन्हों ज्ञान।१०।
प्रेम करैं घनश्याम सों, तन मन करिके एक।
कृष्णदास कहैं सो लखै, फरक परै नहिं नेक॥
हरि इच्छा ते हरा हरि, बाँस प्रगट एक कीन।
ब्रह्मा ने काट्यौ उसे, सवा पोढ़ लै लीन॥
शिव ने तेहि बेधन कियो, सात छिद्र करि दीन।
हर ने बंशी लीन लै, जाय के हरि को दीन॥
पांच बर्ष की आयू के, रहै जबै घनश्याम।
तब यह मुरली बन गई, लगे बजावन श्याम॥
फटै न टूटै बाँसुरी, कभी न मैली होय।
अपनी लीला आप ही, जानै और न कोय।१५।
शिवा कुञ्ज की भूमि पर, प्रगट्यौ बाँस को मान।
प्रीतम प्रिया बिहार को, जहाँ बन्यौ अस्थान॥
बाँस भयो आदृश्य वह, तुरतै लीजै मान।
ध्यान में देख्यौ सुर मुनिन, मानौ बचन प्रमान॥
जा को देंय जनाय हरि, सो कछु पावै जान।
नाहीं तो ढनगत फिरै, ढेला बाट को मान॥
कृष्णदास कहैं जो हमैं, श्री गुरु दीन लखाय।
सो हम तुम से दीन कहि, मानो मन हर्षाय।१९।
पद:-
लखौ हिय सब के राजा राम। काल मुख बनो न खाजा राम॥
साज सब संग में साजा राम। रहत हैं हर दम ताजा राम॥
होय आरत कहै आजा राम। देत पट जल औ नाजा राम॥
बिसारयौ कौने काजा राम। कीन तुम बहुत अकाजा राम॥
बड़े बेशरम न लाजा राम। बड़े हैं दीन नेवाजा राम।१०।
राम बिन कौन नेवाजै राम। दूत यम जब शिर गाजैं राम॥
गर्भ में उलटा लटके राम। बन्द तहँ सब दिशि फटके राम॥
शाम दोपहर औ तड़के राम। मिलत चारा बे खटके राम॥
किहे बिनती तब सटके राम। थूँकि कै फिर क्यों गटके राम॥
फूलि माया में मटके राम। जियत भर ऐसे भटके राम।२०।
गदा शिर पर जब चटकै राम। पकरि कै कसि कै पटकैं राम॥
उठाय के ऐसे झिटकैं राम। टूटि कै सब तन छिटकै राम॥
जाय के नर्क में फटकैं राम। उठैं बहु गन्ध कि लपटैं राम॥
जगत के सुक्ख में अटकैं राम। काल उन्ही को गटकै राम॥
सहैं सब की फटकारैं राम। काम सब वाको सारैं राम।३०।
सुनो जब अनहद बाजा राम। बनो परजा से राजा राम॥
जारी........