२८० ॥ श्री राम दीन जी॥
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लगावो शब्द में सूरति राम। काम सब पूरन होवैं राम॥
उठै धुनि रोम रोम ते राम। रहैं हर दम ही सन्मुख राम॥
तत्व दर्शैं जब पाँचौं राम। खड़े लेटे चलते पर राम॥
श्याम पीले लाले रंग राम। हरे औ श्वेत रंग हैं राम।४०।
चक्र षट बेधन होवैं राम। खिलैं तब कमल सातहु राम॥
होय जागृत कुण्डलिनी राम। बढ़ै आनन्द दिनो दिन राम॥
करौं अस्नान त्रिवेणी राम। दरश तब हों जोती के राम॥
ध्यान में पहुँचि जाव जब राम। चरित बहु बिधि के देखौ राम॥
जाव जब शून्य भवन में राम। रहै नहि सुधि बुधि वँह पर राम।५०।
जाव फिर महाशून्य में राम। कहावै जड़ समाधि वह राम॥
चलो फिर कृष्ण लोक में राम। परो चरनन में समुहे राम॥
लगावैं कर गहि सीने राम। मिलै आनन्द बहुत ही राम॥
जाव साकेत पुरी तब राम। महा परकाश वहाँ पर राम॥
पहुँचिगे सत्यलोक में राम। धाय कर दोउ गहि लीन्हेउ राम।६०।
खेलायो दुलरायो तँह राम। सिंहासन बैठायो तब राम॥
पियायो अमृत अनुपम राम। सबै इच्छा गति ह्वै गई राम॥
भयो मुख मौन खुलै नहि राम। मनो पाषाण के प्रतिमा राम॥
बसन तन कानन कुण्डल राम। श्याम तन शिर पर मुकुट है राम॥
भयो अब बारह वर्ष के राम। अचल ह्वै गयो न जाओ राम।७०।
रूप बनि गयो राम को राम। जानिये बड़ी मोक्ष यह राम॥
बड़ी ताकत है नाम में राम। चढ़ैं पंगुल गिरि तरुवर राम॥
चपल भे मूक जानि कै राम। पढ़ैं अन्धे नित पोथी राम॥
सुनैं बहिरे तँह आय के राम। बिना रसना धुनि होवै राम॥
तार कबहूँ नहिं टूटै राम। जाप अजपा यहि कहते राम।८०।
नाम रंकार राम का राम। बीज या को शिव कहते राम॥
राशि का नाम यथारथ राम। यही सब के अन्तरगत राम॥
रूप को कहते सब हैं राम। सगुन लीला के कारण राम॥
नाम गति अति ऊँची है राम। बिना सतगुरु नहिं पावो राम॥
भक्ति भक्तन की बड़ी है राम। निर्गुण ते सगुन बनत हैं राम।९०।
प्रेम तन मन से जब हो राम। मुदित मन संग में खेलैं राम॥
खाँय संग भोजन जल को राम। करैं नाना बिधि बातैं राम॥
जानि कै तब ही मानै राम। कहै से कभी न जानै राम॥
देंय नित सुर मुनि दर्शन राम। सदा आनन्द एक रस राम॥
तुरिया तीत दशा भै राम। भीतर औ बाहेर एकै राम।१००।
दीन पद बिना मिलैं नहि राम। प्रेम नहिं नेरे आवत राम॥
दास बनि खोजौ स्वामी राम। मिलैं पासै में तुम को राम॥
कहैं यह कृष्ण दास जी राम। आप आपै बनि जाओ राम।१०६।
कजली:-
माया महा ठगिनि है भाई धक्का बड़े बड़ेन को देत।
बैठी छिपि कै पता लगै नहिं संग पांच हैं प्रेत।
कपट कतरनी कर में लीन्हे किह्यो न वासे हेत।
त्रिभुवन पति की छाया जानो है यह बड़ी सचेत।
अपने काम ते चूकत नाहीं काटि लेय सब खेत।५।
संतन की खुब करैं परिच्छा राति दिवस सुधि लेत।
पक्का होय किसान बचै सो सदा चित्त में चेत।
सच्चा ह्वै कर खेल खिलाड़ी डिगै न तनकौ नेत।
दुख सुख झेलै भजै निरन्तर होय न नेक अचेत।
कृष्णदास कहैं श्री गुरु किरपा होय हंस सो श्वेत।१०।
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